lundi 5 septembre 2011

मुन्नू की बहन नीलू-1

प्रेषक : अजय शर्मा

अन्तर्वासना पाठकों को मेरा प्यार भरा प्रणाम। मेरा नाम अजय है और मुझे लोग अज्जू कहकर बुलाते हैं। मैं अंतर्वासना का एक पुजारी हूँ और यह मेरी पहली अर्चना है। आशा करता हूँ कि आपको मेरी यह भेंट स्वीकार होगी।

मेरा यह मानना है कि दारु और चूत कभी भी झूटी नहीं होती - जब भी मौका मिले, इनसे मजे लेने चाहिए। चूत खूब चोदिये मगर गांड मारना न भूलें। और जब गांड मारें तो अपना रायता उसी के अन्दर छोड़ दें ताकि उस लौंडियाँ की गांड में एक गर्म एहसास रह जाए। यह मेरी शैली है - अब कोई माने या न माने।

अब सुनिए मेरी कहानी :

मैं शिमला का रहने वाला हूँ। मेरे घर के पास एक परिवार है जिसमें चार बच्चे हैं - दो बेटे और दो बेटियाँ। छोटा बेटा जिसका नाम मुन्नू है, मेरा बहुत अच्छा दोस्त है - और छोटी बेटी जिसका नाम नीलू है - उसके तो क्या कहने। मुझसे सिर्फ दो साल छोटी है।

मैं मुन्नू के घर बहुत जाता था। मुन्नू से मिलने और फिर नीलू को छूने। मुन्नू और मैं एक ही क्लास में पढ़ते थे। हम दोनों पढ़ाई भी साथ करते थे और लौंडिया-बाज़ी भी साथ ही करते थे। उसको शायद लगता था कि मैं उसकी बहन के चक्कर में उसके घर आता-जाता हूँ। एक दो बार उसने मुझे नीलू को हसरत भरी नज़रों से देखते हुए पकड़ा भी था। एक दिन उसने मुझसे कहा भी था कि मैं अपनी औकात में रहूँ। हर भाई अपनी बहन को शायद इसी तरह सुरक्षित रखना चाहता है।

अब मुन्नू के चाहने से भला क्या होगा। नीलू को मेरा उसे छूना शायद अच्छा लगता था तभी वो मेरे करीब आकर बैठती थी।

उस वक़्त मैं बीस साल का था और नीलू अट्ठारह साल की थी। नीलू एक पंजाबी परिवार से थी। काफी गोरी-चिट्टी और हर जगह से उसका बदन फूट फूट के उभार मार रहा था। बहुत ही चिकनी थी वो। उसकी बाहों पर या टांगों पर बिल्कुल भी बाल नहीं थे। हाँ - बहुत पास से उनमे रोम ज़रूर दीखते थे। मेरी बस एक ही तमन्ना थी कि गुलाब जामुन का शीरा उसके नंगे जिस्म पर डालूँ और ऊपर से नीचे तक उसे चाटूं। यह सोचकर ही मेरा खड़ा होने लगता था और मैं मुठ मारता था। मैं एक मौके की ताक में था कि कब हम अकेले मिलें।

पंजाबियों की दाद देनी पड़ेगी- क्या खाकर ये लोग इतनी सुन्दर और मस्त लौंडियाँ पैदा करते हैं। साला देखते ही लंड खड़ा होने लग जाता है। खैर, रब ने एक दिन मेरी सुन ली।

नीलू मेरे घर आई थी। उसने मेरी माँ से थोड़ी देर बातचीत की और जाने लगी। मैं उसको दरवाजे तक छोड़ने आया और उसको जोर से अपने गले लगा लिया। यह पहली बार था कि मैं उससे लिपट रहा था।

थोड़ी सी कसमसाहट के बाद उसने भी मुझे जोर से भींचना शुरू किया, फिर बोली - दो बजे घर आना ! कोई नहीं रहेगा। सिर्फ हम-तुम !

और एक हल्का सा चुम्बन मेरे गाल पर जड़कर चली गई।

उस दिन मैंने बारह बजे ही खाना खा लिया और फिर अपने कमरे में चला गया। बार-बार मैं अपने लंड को सहलाता रहा और कहता रहा- सैर करने जाएगा?

आपको मैं बताना भूल गया कि मेरा लंड नौ इंच लम्बा है और थोड़ा मोटा भी है। भगवान् ने मुझे काला रंग दिया है लेकिन चेहरा और बदन काफी अच्छा दिया है। थैंक-यू गॉड !

दो बजने को थे। मैं घर से बाहर निकला। उस समय हमारी कालोनी में सन्नाटा छाया हुआ था। सब खा-पी कर सो रहे थे। खैर-अपन को क्या।

मैं नीलू के घर पहुंचा। दरवाजा बंद था। ज़रा सा धक्का दिया और दरवाजा खुल गया।

मैंने धीरे से कहा- नीलू ?

नीलू बोली- दरवाजा बंद करके अन्दर आ जाओ।

मैंने झट से दरवाजा बंद किया और अन्दर के कमरे में चला गया।

वहाँ नीलू एक आदमकद आईने के सामने खड़ी थी। मैं उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। उसे पीछे से भींचकर मैंने कहा- कब तक मुझे यूं ही बेचैन करोगी रानी? अब तो रहा नहीं जाता।

और मैं धीरे धीरे उसके गोल गोल चूतड़ पर पीछे से हल्के-हल्के धक्के लगाने लगा।

इसके जवाब में नीलू भी अपने आपको मेरी ओर झटके देने लगी। उसको मेरे लंड की सख्ती का अंदाजा हो गया। मैंने उसका चेहरा अपनी ओर किया और उसके गर्म गर्म गालों को चूमने लगा। धीरे-धीरे मैं होंठों पर पहुंचा। और फिर उसके होटों पर अपने अधर रखकर मैं जिंदगी का मज़ा लूटने लगा।

उधर नीलू भी मुझे चूसती रही।

मैंने धीरे से अपना बायाँ हाथ उसकी कुर्ती के अन्दर डाला। उसके पेट पर हाथ सहलाते हुए मैं धीरे से उसके मम्मों तक ले गया। एक हल्की सी हूंक निकली लेकिन फिर वो सामान्य हो गई। मेरा हाथ उसके दोनों मम्मों की गोलाईयाँ नाप रहा था।

इतने में मानो मेरे दायें हाथ ने कहा- मैं क्या करूँ?

तो मैंने अपने दूसरे हाथ से उसकी जाँघों का मुआयना किया। क्या सुडौल जांघें थी। धीरे-धीरे मेरा हाथ उसकी चूत पर पहुँचा। शायद उसे भी यही चाहिए था। मैं उसकी चूत पर अपना हाथ फेरता रहा - कभी सहलाता और कभी उसे नोचता था। पायजामे के ऊपर से ही मैं उसकी चूत को रगड़ता रहा। उसके मुँह से सिर्फ ऊह-आह की ही आवाज आ रही थी।

बगल में एक पलंग था। मैं उस पर बैठ गया और धीरे से नीलू को अपनी गोद में बिठा लिया। फिर मैंने उसकी कुर्ती उतार दी। उसकी बगलों से एक परफ्यूम की खुशबू ने तो जैसे मुझे मदहोश ही कर दिया।

मैंने उसकी बगलों को चूमा तो वो उचक गई, क्या करते हो अज्जू?

कहकर वो मुझसे लिपट गई।

मैंने उसके कन्धों को, गर्दन को और गले को खूब चूमा।

नीलू बोली- हे भगवान ! अज्जू क्या कर रहे हो। मैं निचुड़ जाऊंगी।

मैंने उसकी गोरी पीठ पर हाथ फेरा और उसके ब्रा के हुक्स खोल दिए। सामने से ब्रा खींची तो दो संतरे उछालकर बाहर आ गए। मैंने धीरे से उन्हें सहलाया। मैंने दोनों हाथ उन पर रख दिए और उनको मसलने लगा।

नीलू तो जैसे मानो छटपटा रही थी, वह बोलने लगी- ओह गोड ! क्या कर रहे हो अज्जू ! और करो ! बहुत मज़ा आ रहा है !

अब मैंने बारी बारी से उसके संतरों को खूब चूसा। क्या मम्मे थे। एक को दबाता तो दूसरे को चूसता। गोरी चिट्टी नीलू मेरे ऊपर अधनंगी बैठी थी। एक सपना जैसा था। मैं मन ही मन बोला- देख मुन्नू ! तेरी जिज्जी कैसे मेरे ऊपर नंगी बैठी है।

अब मैंने उसे खड़ा किया और धेरे से उसका पायजामा उतारा। क्या जांघें थीं। क्या टांगें थीं। बस देखते ही बनती थीं। नीलू की टांगों पर मैंने हाथ फेरना शुरू किया। दोनों हाथ मानो किसी चिकनी मिटटी पर फिर रहे हों। अब उसके और मेरे बीच में उसकी यह काली चड्डी थी।

दोस्तो, एक बात कहूँगा- गोरी लड़कियों पर काली चड्डी और काली ब्रा बहुत ही सेक्सी लगती है।

उसकी चड्डी उतारी और मैंने उसकी वो चूत देखी जिसका मैं बरसों से इंतज़ार कर रहा था। उसकी टांगें चौड़ी की और उसकी झांटों में मैं अपनी ऊँगली फिराने लगा।

नीलू के पांव कंपकंपाने लगे ! वो सीधे बिस्तर पर लेट गई। मैंने उसकी टाँगें चाटना शुरू की। घुटने चाटते हुए मैं उसकी जाँघों पर पंहुचा। फिर मैंने अपना मुँह उसकी चूत पर गाड़ दिया।












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